41 साल बाद साक्षात हनुमान जी यहा आते है दर्शन देने
Hanuman Ji Ki Leela कौन कहता है कि चमत्कार केवल प्राचीन युग में ही होते थे। आज भी दुनिया में विभिन्न क्षेत्रों में बसे लोग इस ‘चमत्कार’ नामक शक्ति को महसूस करते हैं।

hanuman ji ki leela
इन्हीं चमत्कारों में से एक है हिन्दू भगवान बजरंग बली यानी कि hanuman ji ki leela का दिखना।
मान्यतानुसार सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा जब धरती पर कल्कि रूप में जन्म लिया जाएगा तब 7 देवता (श्री हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि) सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे।
इनके आने का समय तो कोई जान नहीं पाया है, लेकिन कई लोगों ने इनकी उपस्थिति को महसूस जरूर किया है।
कहा जाता है की मातंग जाति के आदिवासियो को प्रत्येक 41 साल बाद साक्षात हनुमानजी दर्शन देने आते है
भगवान हनुमानजी को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है. मान्यता है कि वे आज भी जीवित हैं और हिमालय के ऋषिमूक पर्वत पर रहते हैं।
जब चिरंजीवी हनुमानजी मातंग जाति के लोगो के पास 41 साल बाद रहने आते हैं
तो उनके द्वारा उस प्रवास के दौरान किए गए हर कार्य और उनके द्वारा बोले गए हर शब्द का एक एक मिनट का विवरण इन आदिवासियों के मुखिया बाबा मातंग अपनी हनु-पुस्तिका में लिखते हैं।
मई 2014 के प्रवास के दौरान हनुमानजी द्वारा जंगल वासियों के साथ की गई सभी लीलाओं का विवरण भी इसी हनु-पुस्तिका में लिखा गया है।

Hanuman Ji Ki Leela
इन मातंगों की यह गतिविधियां प्रत्येक 41 साल बाद ही सक्रिय होती है। मातंगों अनुसार हनुमानजी ने उनको वचन दिया था कि मैं प्रत्येक 41 वर्ष में तुमसे मिलने आऊंगा और आत्मज्ञान दूंगा।
अपने वचन के अनुसार उन्हें हर 41 साल बाद आत्मज्ञान देकर आत्म शुद्धि करने हनुमानजी आते हैं।
मातंग जाति एक आदिवासी समूह है जिनका बाहरी दुनिया से कोई नाता-रिश्ता नहीं है। इनका रहन-सहन और पहनावा भी बेहद विचित्र है। कोई आम व्यक्ति उनकी भाषा भी समझ नहीं सकता।
सेतु एशिया नाम के इस आध्यात्मिक संगठन, जो इस आदिवासी समूह पर अध्ययन कर रहा है, इनका केंद्र कोलंबो में है।
सेतु एशिया के अध्ययनकर्ताओं अनुसार मातंगों के हनुमानजी के साथ विचित्र संबंध हैं जिसके बारे में पिछले साल ही पता चला। फिर इनकी विचित्र गतिविधियों पर गौर किया गया, तो पता चला कि यह सिलसिला रामायण काल से ही चल रहा है।..
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श्रीलंका के पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहने वाले मातंग कबीले के लोग संख्या में बहुत कम हैं और श्रीलंका के अन्य कबीलों से काफी अलग हैं।
सेतु संगठन ने उनको और अच्छी तरह से जानने के लिए जंगली जीवन शैली अपनाई और इनसे संपर्क साधना शुरू किया।
संपर्क साधने के बाद उन समूह से उन्हें जो जानकारी मिली उसे जानकर वे हैरान रह गए।
सेतु ने दावा किया है कि हमारे संत पिदुरु पर्वत की तलहटी में स्थित अपने आश्रम में इस पुस्तिका तो समझकर इसका आधुनिक भाषाओँ में अनुवाद करने में जुटे हुए हैं ताकि हनुमानजी के चिरंजीवी होने के रहस्य जाना जा सके
अभी तक हनु-पुस्तिका के 3 अध्यायों को समझा जा सका है
इन आदिवासियों की भाषा पेचीदा और हनुमानजी की लीलाएं उससे भी पेचीदा होने के कारण इस पुस्तिका को समझने में काफी समय लग रहा है।
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